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हरियाणा सरकार के सूचना, जनसंपर्क, भाषा एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के सौजन्य से मंचन एतहासिक नाटक,

हरियाणा सरकार के सूचना, जनसंपर्क, भाषा एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के सौजन्य से मंचन एतहासिक नाटक, नरवाना,
स्थानीय एस.डी. पब्लिक स्कूल के सभागार में बुधवार को 1857 की प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की गौरवशाली गाथा को जीवंत करते हुए “1857 का संग्राम – हरियाणा के वीरों के नाम” नामक ऐतिहासिक नाटक का प्रभावशाली मंचन किया गया। यह नाटक हरियाणा सरकार के सूचना, जनसंपर्क, भाषा एवं सांस्कृतिक कार्य विभाग के सौजन्य से प्रस्तुत किया गया, जिसका उद्देश्य देश की आज़ादी की पहली लड़ाई में हरियाणा के वीर सपूतों, आमजन और किसानों के अमूल्य योगदान को जनमानस तक पहुँचाना रहा।
नाटक के मंचन के दौरान कलाकारों ने अपने सशक्त अभिनय, संवाद अदायगी और भाव-भंगिमाओं के माध्यम से उन वीर जवानों की शौर्यगाथा को प्रस्तुत किया, जिनका योगदान इतिहास के पन्नों में या तो दर्ज नहीं है या बहुत कम उल्लेखित है। प्रस्तुति ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि 1857 का संग्राम केवल कुछ सैनिकों तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें हरियाणा की धरती से जुड़े किसान, कारीगर, व्यापारी और आम नागरिक भी पूरे साहस और समर्पण के साथ शामिल हुए थे।
नाटक में बताया गया कि 10 मई 1857 को अंबाला छावनी से इस महाविद्रोह की चिंगारी भड़की, जिसने देखते ही देखते पूरे उत्तर भारत को अपनी चपेट में ले लिया। मंचन के दौरान उस ऐतिहासिक प्रसंग को प्रभावी ढंग से दिखाया गया, जब अंग्रेज हुकूमत ने भारतीय सैनिकों को सूअर और गाय की चर्बी से बने कारतूसों के उपयोग के लिए मजबूर किया। इस बात की जानकारी मिलते ही सैनिकों में आक्रोश फैल गया। विशेष रूप से हरियाणा के वीर सपूत मंगल पांडे द्वारा इन कारतूसों के प्रयोग का विरोध कर अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंका गया, जिसे कलाकारों ने अत्यंत ओजपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया।
नाटक के माध्यम से दर्शकों को यह भी बताया गया कि आज़ादी की इस पहली लड़ाई में विद्रोही सैनिक अकेले नहीं थे। उन्हें हरियाणा के अनेक उद्यमी, समाजसेवी और रियासती शासकों का भरपूर समर्थन मिला। उधमीराम जाट, राव तुलाराम, शक्रुद्दीन, मिर्जा गफूर, धन्ना सेठ और नाहर सिंह जैसे वीरों ने विद्रोही सैनिकों को संगठित किया, उन्हें नेतृत्व प्रदान किया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ खुलकर बगावत की। कलाकारों ने उनके साहस, दूरदर्शिता और बलिदान को इस तरह उकेरा कि दर्शक भाव-विभोर हो उठे।
नाटक का एक महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि इसमें केवल प्रसिद्ध नामों तक ही सीमित न रहते हुए हरियाणा के उन बेनामी वीरों को भी श्रद्धांजलि दी गई, जिनकी कुर्बानियाँ इतिहास में दर्ज नहीं हो सकीं। किसानों द्वारा अपनी फसलें और संसाधन विद्रोही सैनिकों के लिए समर्पित करना, आमजन द्वारा अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ छिपकर सहायता करना और महिलाओं द्वारा भी स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग देना—इन सभी दृश्यों ने यह सिद्ध कर दिया कि 1857 का संग्राम एक जनांदोलन था।
प्रस्तुति के दौरान मंच सज्जा, पारंपरिक वेशभूषा, प्रकाश व्यवस्था और पृष्ठभूमि संगीत ने नाटक को और अधिक प्रभावशाली बना दिया। कलाकारों की टीम ने इतिहास को केवल कथानक के रूप में नहीं, बल्कि जीवंत अनुभव के रूप में प्रस्तुत किया। इस अवसर पर उपस्थित शिक्षाविदों, अभिभावकों और विद्यार्थियों ने नाटक की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम नई पीढ़ी को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़ने का सशक्त माध्यम हैं। उन्होंने कहा कि आज जब युवा पीढ़ी आधुनिकता की दौड़ में आगे बढ़ रही है, ऐसे में अपने पूर्वजों के बलिदान और संघर्ष को जानना बेहद आवश्यक है, ताकि उनमें देशभक्ति और सामाजिक जिम्मेदारी की भावना और प्रबल हो सके।

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